एसटीडी क्या होता है ?
एसटीडी यानी योग संचारित रोग कई तरह के संक्रमण और बीमारियों का समूह होता है, जो विशेष रूप से यौन संबंध बनाने के दौरान फैलता है | कई बार एसटीडी होने के कारणों का पता लगाने में कई सालों तक का समय भी लग जाता है | अगर सही समय पर एसटीडी का इलाज न किया गया तो यह पीड़ित व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकता है | एसटीडी आमतौर योनि, गुदा और मौखिक द्वारा किये गए सेक्स के दौरान फैलता है | एसटीडी होने के मुख्य कारणों में बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोज़ोआ और आथ्रोपोड आदि शामिल होते है | एचआईवी, जो की एक घातक एसटीडी होता है, यह रेट्रोवायरस के कारण होता है | इसके अलावा गोनोरिया और क्लैमिडिया भी एसटीडी के बैक्टीरिया के कारण हो सकते है | यदि आप भी ऐसी किसी परिस्थिति से गुजर है तो इलाज में डॉक्टर सुमिता सोफत आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकते है | आइये जानते है एसटीडी कितने प्रकार के होते है :-
एसटीडी कितने प्रकार के होते है ?
एसटीडी और एसटीआई कई प्रकार के होते है, जिनमें शामिल है :-
- क्लैमाइडिया
- गोनोरिया
- एचआईवी / एड्स
- जेनिटल हार्पिस
- प्यूबिक लाइस
- सिफलिस
- ट्राइकोमोनिएसिस
- एचपीवी
एसटीडी होना कितना आम होता है ?
इस विषय पर डॉक्टर सुमिता सोफत का यह कहना है कि एसटीडी यानी यौन संचारित रोग को आप जितना आम रोग सोच सकते हो, यह उससे भी कई गुना सामान्य रोग होता है | एक शोध के अनुसार हर साल लाखों की तादात में लोग एसटीडी से संक्रमित हो जाते है | इनमें से कई मामलों में एसटीडी होने के लक्षण कुछ ख़ास दिखयी नहीं देते, जिसकी वजह से बहुत से लोगों को इस बात का पता ही नहीं चल पाता की वह एसटीडी से संक्रमित हो चुके है | इसके अलावा हर साल दुनिया भर में क्लैमाइडिया, गोनोरिया और सिफलिस से पीड़ितों के लगभग 37.4 करोड़ मामलें सामने आते है | आइये जानते है एसटीडी होने के मुख्य लक्षण और कारण क्या है :-
एसटीडी होने के मुख्य लक्षण और कारण क्या है ?
एसटीडी होने के लक्षण बीमारी के प्रकार पर निर्भर कर सकता है, फिर भी ऐसे कुछ सामान्य लक्षण है, जिसे आमतौर पर देखा जा सकता है, जैसे की :-
- योनि से अस्वस्थ रक्तस्राव होना
- जननांग हिस्से में किसी प्रकार का घाव और मस्से का उत्पन्न होना
- पेशाब करने के दौरान दर्द और जलन का अनुभव होना
- मुंह के आसपास छाले या फिर घाव होना
- गुदा में लगातार खुजली, दर्द और लालिमा होना
- महिलाओं में से असामान्य गंध का आना
- पेट में तीव्र दर्द होने का अनुभव होना
- तेज़ बुखार आदि
एचआईवी जैसे एसटीडी बीमारियां लक्षण विहीन होते है, यदि ऊपर बताए गए किसी भी लक्षण से आप गुजर रहे है तो इलाज के लिए तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें |
एसटीडी क्यों होता है ?
एसटीडी रोग, एसटीडी संक्रमणों के कारण ही होता है, जो यौन गतिविधि के दौरान संपर्क में आने वाले रक्त, वीर्य और अन्य शारीरिक तरल पदार्थ से फैलते है | जिनमें मौखिक, और अन्य प्रकार के यौन संपर्क भी शामिल होते है |
क्या एसटीडी संक्रामक हो सकता है ?
यह बात बिल्कुल सही है, क्योंकि अधिकतर मामलों में एसटीडी संक्रामक ही होते है | अधिकतर एसटीडी संक्रमण यौन संपर्क और शरीर के संक्रमित हिस्से को छूने से ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को फैलता है | कुछ एसटीडी माँ से नवजात शिशु में भी फैलने की संभावना होती है | इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है की उचित इलाज के लिए डॉक्टर से परामर्श ज़रूर करें, ताकि एसटीडी के प्रसार को रोका जा सके |
एसटीडी से जुड़े जोखिम कारक कौन-से है ?
एसटीडी की समस्या को बढ़ाने वाले जोखिम कारकों में शामिल है :-
असुरक्षित तरीके से यौन संबंध बनाना :- संक्रमित साथी के साथ असुरक्षित तरीके से योनि या फिर गुदा से यौन संबंध बनाने से एसटीडी होने का जोखिम कारक काफी अधिक बढ़ जाता है | प्राकृतिक झिल्लियों से बने कॉन्डोम का कभी भी सिफारिश नहीं किया जाता, क्योंकि वह एसटीआई की रोकने के लिए इतने प्रभावी नहीं होते है | कॉन्डोम का हर बार उपयोग न करना या फिर सही तरीके से उपयोग करना, इसके जोखिम कारक को बढ़ा सकते है |
कई साथियों के साथ यौन संपर्क बनाना :- जितने अधिक व्यक्तियों के साथ आप यौन क्रियाकलाप करते है, उतना ही आपके लिए एसटीडी से जुड़े जोखिम के बढ़ने की संभावना रहती है |
एसटीआई होने का इतिहास होना :- यदि आप पहले से से एसटीआई संक्रमण से संक्रमित है, तो इससे दूसरे एसटीआई के लिए फैलना काफी आसान हो जाता है |
नशीली दवाओं का इंजेक्शन लगाना :- नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने के लिए किया गया इंजेक्शन का इस्तेमाल, कई तरह के गंभीर संक्रमणों को फैला सकता है, जैसे की एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी आदि |
युवा में होना :- 15 से 24 की आयु वाले लोगों को इससे अधिक उम्र के लोगों की तुलना में एसटीआई होने का स्तर सबसे अधिक होता है |
माताओं से भी फ़ैल सकता है एसटीडी ?
गर्भावस्था या फिर प्रसव के दौरान, कुछ एसटीडी संक्रमण माँ के द्वारा शिशुओं में फ़ैल सकता है | उदारहरण के तौर पर बात करें तो गोनोरिया, क्लैमाइडिया, एसआईवी और सिफलिस जैसे एसटीडी संक्रमण माँ के द्वारा आसानी से बच्चों में फ़ैल सकते है | शिशुओं में होने वाला एसटीडी संक्रमण, उनके लिए गंभीर समस्याएं या फिर जानलेवा भी हो सकता है | इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है की सभी गर्भवती महिलाओं को एक बार एसटीआई संक्रमण की जांच ज़रूर करवा लेनी चाहिए और आवशयकता अनुसार उपचार भी ज़रूर करवाना चाहिए |
एसटीडी का इलाज कैसे किया जाता है ?
एसटीडी का इलाज अन्य संक्रमणों की तरह ही किया जाता है, जिसमें सबसे सामान्य उपचार में शामिल है :-
एंटीबायोटिक्स :- एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया-प्रेरित जैसे की गोनोरिया और सिफलिस के विकास को रोकने में मदद करता है |
एंटीवीराल दवाएं :- एंटीवायरल दवाएं एचआईवी और एचपीवी जैसे संक्रमणों पर काम करती है | हालांकि एचआईवी का पूर्ण रूप से इलाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन इन दवाओं के माध्यम से एचआईवी से पड़ने वाले प्रभाव को प्रबंधित ज़रूर किया जा सकता है |
यदि आप भी ऐसे ही समस्या से पीड़ित है और अपना इलाज करवाना चाहते है तो इसके लिए आप डॉक्टर सुमिता सोफत से मिल सकते है | डॉ सुमिता सोफत हॉस्पिटल की सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर सुमिता सोफत पंजाब के बेहतरीन आईवीएफ स्पेशलिस्ट में से एक है, जो पिछले 30 सालों से अपने मरीज़ो का स्थायी रूप से इलाज कर रही है | इसलिए आज ही डॉ सुमिता सोफत हॉस्पिटल की वेबसाइट पर जाएं और परामर्श के लिए अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | इसके अलावा आप वेबसाइट पर दिए गए नंबरों से संपर्क कर सीधा संस्था से भी चयन कर सकते है |