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क्या थायराइड की समस्या IVF की सफ़लतादर को कम करती है ? जाने IVF विशेषज्ञों से 

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IVF के दौरान महिला का थायरॉयड स्वास्थ्य बहतु ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है। और आजकल थायराइड एक बहुत ही आम समस्या बन गई है। ज़्यादातर लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। आपको बता दे कि थायराइड गर्दन में स्थित होता है, और थायराइड से हार्मोन चयापचय प्रक्रिया, ऊर्जा और प्रजनन क्षमता सहित लगभग हर अन्य शारीरिक प्रक्रिया का प्रबंधन करते हैं। इस लिए थायरॉयड स्वास्थ्य उस महिला के लिए बहुत ज़्यादा ज़रूरी होती है जो महिला स्वाभाविक रूप से या फिर IVF द्वारा गर्भधारण करना चाहती है।

आपको बता दें की जो महिला बांझपन का सामना कर रही उनमें थायरॉयड की समस्या आम है। थायरॉयड ग्रंथि उन हार्मोनों को नियंत्रित करती है, जोकि महिला के गर्भधारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं। अगर महिला में थायरॉयड का स्तर असंतुलित है, तो उसको गर्भधारण करने में बहुत ज़्यादा मुश्किल आ सकती है। इस लिए जो महिलाएं आईवीएफ उपचार करवाना चाहती हैं तो उनको इसके बारे में जानकारी होना बहुत ज़्यादा जरूरी है कि थायरॉयड की समस्या IVF के दौरान प्रजनन क्षमता पर क्या प्रभाव डालती है। 

थायराइड की समस्या क्या है ?

थायराइड की समस्या आम तोर पर गले में स्थित एक तितली के आकार की ग्रंथि होती है। और ये ग्रंथि हार्मोन के उत्पादन का काम करती है। और साथ के साथ मेटाबॉलिज्म और शारीरिक कार्यों  को भी नियंत्रित करती है। जब व्यक्ति के शरीर में हार्मोन का उत्पादन सामान्य से बहुत ज्यादा कम हो जाता है तो उसको हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है। वहीं अगर इसका उत्पादन सामान्य से अधिक हो जाये तो उसको हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है। आम तौर पर यह दोनों तरह की स्थिति में व्यक्ति की सेहत को प्रभावित कर सकती हैं। जब व्यक्ति की थायराइड ग्रंथि जरूरत से कम या फिर जरूरत से ज्यादा हार्मोन का निर्माण करती है तो थायराइड से जुड़ी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

थायराइड कैसे होता है?

  •  ज़्यादा तनाव लेने पर 
  • आयोडीन की कमी होना या फिर उसका बढ़ना 
  • शराब और सिगरेट का सेवन करना 
  • आनुवंशिकी होना (पारिवारिक इतिहास होना )

थायराइड के लक्षण

हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण हो सकते हैं :

  • वज़न कम हो जाना 
  • घबराहट का होना
  • मूड में बदलाव होना 
  • सांसों का फूलना 
  • ज्यादा गर्मी लगना 
  • नींद का कम होना 
  • बहुत ज्यादा चिंता और परेशानी का होना
  • दिल की धड़कनो का तेज़ होना 
  • बहुत ज्यादा प्यास लगना 
  • आँखों का लाल होना और आँखों में रूखापन आना 

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण

  • व्यक्ति का वजन बढ़ना 
  • भूइत ज़्यादा थकान महसूस होना
  • बालों का झड़ना
  • बहुत ज्यादा ठंड लगना
  • डिप्रेशन होना 
  • गले का बैठ जाना 
  • मानसिक तनाव का होना
  • मांसपेशियों में अकड़न आना 
  • व्यक्ति के नाखूनों और बालों का कमजोरी आना 
  • त्वचा रूखी और कमजोर होना

IVF में थायराइड की समस्याएं प्रजनन क्षमता को कैसे प्रभावित करती हैं?

महिला के ओव्यूलेशन और मासिक धर्म चक्र को थायरॉयड हार्मोन नियंत्रित करते हैं। हार्मोनों में अनियमितता महिलाओं के बांझपन का कारण बन सकती है। आपको बता दें कि हाइपोथायरायडिज्म और हाइपोथायरायडिज्म थायराइड दोनों ही महिला के प्रजनन स्वास्थ्य में बाधा डाल सकते हैं। आम तौर पर गर्भपात, प्रत्यारोपण विफलता और हार्मोन का असंतुलन थायरॉयड नपुंसकता से जुड़े होते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म : इसमें, थायरॉयड ग्रंथि हाइपो सेक्रेटेड होती है और बहुत ही कम हार्मोन का उत्पादन करती है। इसके लक्षण जैसे थकान, वजन बढ़ना और महिला का अनियमित मासिक धर्म शामिल हैं, हाइपोथायरायडिज्म ओव्यूलेशन में मुश्किलों का कारण बनता है। जिससे महिला के गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है।

हाइपरथायरायडिज्म : इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि बहुत ज़्यादा सक्रिय हो जाती है, जिससे हार्मोन बहुत ज्यादा पैदा होता हैं। इसके लक्षण जैसे हृदय गति का तेज हो जाना, वजन कम होना और चिंता शामिल हैं। हाइपरथायरायडिज्म इम्पलांटेशन और गर्भावस्था के शुरुआती विकास में दिक्कत पैदा कर सकती है। 

थायराइड और आईवीएफ सफलता के बीच संबंध

है ये बात सच है की थायरॉइड की समस्याएँ IVF की सफलता दर को कम कर सकती हैं। ये समस्या अक्सर भ्रूण इम्प्लांटेशन में बाधा उत्पन्न करती हैं। इसके आलावा IVF प्रकिरिया के दौरान हार्मोनल दवाएँ थायरॉइड असंतुलन को और भी ज्यादा बिगाड़ सकती हैं। इसलिए जो भी महिलाएं IVF में शामिल होना चाहती हैं ये फिर IVF शुरू करने से पहले अपने थायराइड के स्तर की जांच करवाना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। थायरॉइड की समस्या का जल्दी पता लगने पर IVF के सफल परिणाम की संभावना बढ़ जाती है।

आईवीएफ से पहले थायराइड जांच का महत्व

IVF के दौरान थायराइड का ठीक होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है। आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि IVF शुरू करने से पहले, थायरॉयड फ़ंक्शन की जांच करवाना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। जांच के दौरान डॉक्टर TSH, T3 और T4 के स्तर को मापते हैं। महिला की आदर्श रूप से गर्भधारण की बेहतर संभावना के लिए TSH को 2.5 mIU/L से नीचे रहना बहुत जरूरी होता है। अगर जांच में ये स्तर कम होता है तो उसको दवाइयों की मदद से ठीक किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप IVF का उपचार शुरू होने से पहले हार्मोन संतुलन में सुधार दिखाई देता है। 

IVF दौरान थायराइड समस्याओं का प्रबंधन

सही दवा और अपनी जीवनशैली में बदलाव के साथ थायराइड के मरीजों में इसका सुधार देखा जा सकता है। सही देखभाल थायराइड की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। 

आम तौर पर डॉक्टर हाइपोथायरायडिज्म के लिए लेवोथायरोक्सिन की सलाह देते हैं। और इसकी दूसरी तरफ एंटी थायराइड दवाओं से हाइपरथायरायडिज्म का इलाज होता है। महिअलों के हार्मोनल संतुलन को जल्दी से बहाल करना इन उपचारों का मकसद होता है। 

निष्कर्ष : आज के समय में थायराइड की समस्या लोगों में आम है। और इस परेशानी से काफ़ी महिलाएं परेशान हैं। थायराइड से कई तरह की समस्या उत्पन्न होती है जैसे कि वज़न बढ़ना और घटना, चिंता होना, घबराहट होना,बालों का झड़ना और सासों का फूलना आदि।जो IVF को प्रभावित करते हैं। सही दवा, अपनी जीवनशैली में बदलाव और सही देखभाल से इस को दूर किया जा सकता है। IVF से पहले अपने थायराइड की जांच करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। स्वस्थ थायराइड IVF की सफलता दर को बढ़ाता है। अगर आप भी IVF के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं और इस प्रक्रिया को करवाना चाहते हैं, तो आप आज ही सुमिता सोफत अस्पताल जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते है और जानकारी इसके विशेषज्ञों से ले सकते हैं। 

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